TIPS FROM BHATIASIR FOR U---ASTROLOGY AND VASTU

TIPS FROM BHATIASIR FOR U---ASTROLOGY AND VASTU

आप का जन्म किस गण में हुआ है और आपके पास कौन सी शक्ति है,जानिए अपनी शक्तियों को
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⭕शास्त्र में लोगो को 3 गणों में विभाजित किया गया है – देवगण, मनुष्‍य गण और राक्षस गण। और देवगण में पैदा होने वाले व्यक्ति के व्यवहार में देवों के समान गुण विद्यमान होते हैं।
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⭕देवगण - इस में पैदा होने वाले व्यक्ति दानी, बुद्धि वाला और अच्छे दिल का होता है। ये लोग सुंदर और अच्छे व्यक्तित्व वाले होते हैं। इनका दिमाग बहुत तेज चलता है। ये हमेशा दूसरों के लिए दया का भाव रखते है।
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⭕मनुष्य गण - इस में जन्म लेने वाले व्यक्ति मानी, धनवान, बड़ी आँखों वाले और सभी लोगो को वश में करने वाले होते है। ऐसे लोग किसी भी समस्या वाली स्थिति में डर जाते हैं। और समस्या का सामना करने की ताकत बहुत कम होती है।
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⭕राक्षस गण - इस में जन्म लेने वाले व्यक्ति झगड़ालु, उन्मादयुक्त, भयंकर स्वरूप और कड़वी बात बोलने वाले होते है। लेकिन इसके अलावा भी इस में जन्म लेने वालो में कई प्रकार की अच्छाइयां होती हैं। और ये कभी भी परेशानिओ से डर कर नहीं भागते हैं, और परेशानी से मजबूती के साथ खड़े होकर मुकाबला करते हैं।
 
⭕देव गण बनता है इस समय में 
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जिस व्यक्ति का जन्म अश्विनी,अनुराधा, श्रावण, मृगशिरा, पुष्‍य, हस्‍त, स्‍वाति,पुर्नवासु, रेवती नक्षत्र के समय में होता है, वो व्यक्ति इस गण का होता हैं।
⭕मनुष्य गण बनता है इस समय में -
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जिस व्यक्ति का जन्म फाल्गुनी, उत्तर फाल्गुनी, भरणी, रोहिणी, उत्तर षाढा, आर्दा, पूर्वा पूर्व षाढ़ा, पूर्व भाद्रपद, उत्तर भाद्रपद के समय होता है, वो व्यक्ति इस गण का होता हैं।
⭕राक्षस गण बनता है इस समय में -
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और जिस व्यक्ति का जन्म कृत्तिका, धनिष्ठा, चित्रा, मघा, अश्लेषा, विशाखा, ज्येष्ठा, मूल, शतभिषा नक्षत्र के समय जन्म होता है, वो व्यक्ति इस गण का होता हैं।
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सोलह वैदिक संस्कार -
 
महर्षि दयानन्द सरस्वती ने संस्कारविधि ग्रन्थ में सोलह संस्कारों का विधान किया है। जिनमें तीन गर्भावस्था सम्बन्धित, आठ ब्रह्मचर्यावस्था सम्बन्धित, दो गृहस्थावस्था सम्बन्धित, एक वानप्रस्थ तथा एक संन्यास सम्बन्धित है एवं अन्तिम संस्कार मरणोपरान्त किया जाता है। वे सोलह संस्कार निम्न हैं-
(1) गर्भाधान संस्कार, (2) पुंसवन संस्कार, (3) सीमन्तोन्नयन संस्कार, (4) जातकर्म संस्कार, (5) नामकरण संस्कार, (6) निष्क्रमण संस्कार, (7) अन्नप्राषन संस्कार, (8) चूडाकर्म संस्कार, (9) कर्णवेध संस्कार, (10) उपनयन संस्कार, (11) वेदारम्भ संस्कार, (12) समावर्त्तन संस्कार, (13) विवाह संस्कार, (14) वानप्रस्थ संस्कार, (15) संन्यास संस्कार, (16) अन्त्येष्टि संस्कार।
 
1. गर्भाधान संस्कारः उत्तम सन्तान की प्राप्ति के लिये प्रथम संस्कार।
 
2. पुंसवन संस्कारः गर्भस्थ शिशु के बौद्धि एवं मानसिक विकास हेतु गर्भाधान के पश्चात्् दूसरे या तीसरे महीने किया जाने वाला द्वितीय संस्कार।
 
3. सीमन्तोन्नयन संस्कारः माता को प्रसन्नचित्त रखने के लिये, ताकि गर्भस्थ शिशु सौभाग्य सम्पन्न हो पाये, गर्भाधान के पश्चात् आठवें माह में किया जाने वाला तृतीय संस्कार।
 
4. जातकर्म संस्कारः नवजात शिशु के बुद्धिमान, बलवान, स्वस्थ एवं दीर्घजीवी होने की कामना हेतु किया जाने वाला चतुर्थ संस्कार।
 
5. नामकरण संस्कारः नवजात शिशु को उचित नाम प्रदान करने हेतु जन्म के ग्यारह दिन पश्चात् किया जाने वाला पंचम संस्कार।
 
6. निष्क्रमण संस्कारः शिशु के दीर्घकाल तक धर्म और मर्यादा की रक्षा करते हुए इस लोक का भोग करने की कामना के लिये जन्म के तीन माह पश्चात् चौथे माह में किया जाने वला षष्ठम संस्कार।
 
7. अन्नप्राशन संस्कारः शिशु को माता के दूध के साथ अन्न को भोजन के रूप में प्रदान किया जाने वाला जन्म के पश्चात् छठवें माह में किया जाने वाला सप्तम संस्कार।
 
8. चूड़ाकर्म (मुण्डन) संस्कारः शिशु के बौद्धिक, मानसिक एवं शारीरिक विकास की कामना से जन्म के पश्चात् पहले, तीसरे अथवा पाँचवे वर्ष में किया जाने वाला अष्टम संस्कार।
 
9. विद्यारम्भ संस्कारः जातक को उत्तमोत्तम विद्या प्रदान के की कामना से किया जाने वाला नवम संस्कार।
 
10. कर्णवेध संस्कारः जातक की शारीरिक व्याधियों से रक्षा की कामना से किया जाने वाला दशम संस्कार।
 
11. यज्ञोपवीत (उपनयन) संस्कारः जातक की दीर्घायु की कामना से किया जाने वाला एकादश संस्कार।
 
12. वेदारम्भ संस्कारः जातक के ज्ञानवर्धन की कामना से किया जाने वाला द्वादश संस्कार।
 
13. केशान्त संस्कार: गुरुकुल से विदा लेने के पूर्व किया जाने वाला त्रयोदश संस्कार।
 
14. समावर्तन संस्कारः गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की कामना से किया जाने वाला चतुर्दश संस्कार।
 
15. पाणिग्रहण संस्कारः पति-पत्नी को परिणय-सूत्र में बाँधने वाला पंचदश संस्कार।
 
16. अन्त्येष्टि संस्कारः मृत्योपरान्त किया जाने वाला षष्ठदश संस्कार।
 
उपरोक्त सोलह संस्कारों में आजकल नामकरण, अन्नप्राशन, चूड़ाकर्म (मुण्डन), यज्ञोपवीत (उपनयन), पाणिग्रहण और अन्त्येष्टि संस्कार ही चलन में बाकी रह गये हैं।??

अतिउपयोगी घरेलू नुस्‍खे।।
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?1.  तेज सिरर्दर्द से छुटकारा पाने के लिए सेब को छिल कर बारीक काटें। उसमें थोड़ा सा नमक मिलाकर सुबह खाली पेट खाएं।
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?2. (Periods) में दर्द से छुटकारा पाना के लिए ठंडे पानी में दो-तीन नींबू निचोड़ कर पिये।
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?3. शरीर पर कहीं जल गया हो, तेज धूप से त्वचा झुलस गई हो, त्वचा पर झुर्रियां हों या कोई त्वचा रोग हो तो कच्चे आलू का रस निकालकर लगाने से फायदा होता हैं।
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?4. मक्खन में थोड़ा सा केसर मिलाकर रोजाना लगाने से काले होंठ भी गुलाबी होने लगते हैं।
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?5. मुंह की बदबू से परेशान हों तो दालचीनी का टुकड़ा मुंह में रखें।
मुंह की बदबू तुरंत दूर हो जाती हैं।
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?6. बहती नाक से परेशान हों तो युकेलिप्टस(सफेदा) का तेल रूमाल में डालकर सूंघे। आराम मिलेगा।
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?7. कुछ दिनों तक नहाने से पहले रोजाना सिर में प्याज का पेस्ट लगाएं।
बाल सफेद से काले होने लगेंगे।
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?8. चाय पत्ती के उबले पानी से बाल धोएं, इससे बाल कम गिरेंगे।
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?9. बैंगन के भरते में शहद मिलाकर खाने से अनिद्रा रोग का नाश होता है।
ऐसा शाम को भोजन में भरता बनाते समय करें।
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?10. संतरे के रस में थोड़ा सा शहद मिलाकर दिन में तीन बार एक-एक कप पीने से गर्भवती की दस्त की शिकायत दूर हो जाती हैं।
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?11. गले में खराश होने पर सुबह-सुबह सौंफ चबाने से बंद गला खुल जाता हैं।
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?12. सवेरे भूखे पेट तीन चार अखरोट की गिरियां निकालकर कुछ दिन खाने मात्र से ही घुटनों का दर्द समाप्त हो जाता हैं।
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?13. ताजा हरा धनिया मसलकर सूंघने से छींके आना बंद हो जाती हैं।
?14.प्याज का रस लगाने से मस्सो के छोटे–छोटे टुकड़े होकर जड़ से गिर जाते हैं।
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?15. प्याज के रस में नींबू का रस मिलाकर पीने से उल्टियां आना तत्काल बंद हो जाती हैं।
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?16. गैस की तकलीफ से तुरंत राहत पाने के लिए लहसुन की 2 कली छीलकर 2 चम्मच शुद्ध घी के साथ चबाकर खाएं फौरन आराम होगा।
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?17. मसालेदार खाना खाएं मसालेदार खाना आपकी बंद नाक को तुरंत ही खोल देगा।
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?18. आलू का छिलका आपकी त्वचा पर ब्लीच की तरह काम करता है। इसे लगाने से आपकी काली पड़ी त्वचा का रंग सुधरता है।
इसलिए आज के बाद आलू के छिलके को फेके नहीं बल्कि उनका इस्तेमाल करें।
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?19. यदि आपको अकसर मुंह में छाले होने की शिकायत रहती है तो रोज़ाना खाना खाने के बाद गुड को चूसना ना भूलें। ऐसा करने छाले आपसे बहुत दूर रहेंगे।
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?20. पतली छाछ में चुटकी भर सोडा डालकर पीने से पेशाब की जलन दूर होती ह
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?21. प्याज और गुड रोज खाने से बालक की ऊंचाई बढती हैं।
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?22. रोज गाजर का रस पीने से दमें की बीमारी जड़ से दूर होती हैं।
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?23. खजूर गर्म पानी के साथ लेने से कफ दूर होता हैं।
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?24. एक चम्‍मच समुद्री नमक लें और अपनी खोपड़ी पर लगा लें। इसे अच्‍छी तरह से मसाज करें और ऐसा करते समय उंगलियों को गीला कर लें। बाद में शैम्‍पू लगाकर सिर धो लें। महीने में एक बार ऐसा करने से रूसी नहीं होगी।
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?25. अगर आपके नाखून बहुत कड़े हैं तो उन्‍हे काटने से पहले हल्‍के गुनगुने पानी में नमक डालकर, हाथों को भिगोकर रखें। और 10 मिनट बाद उन नाखूनों को काट दें। इससे सारे नाखून आसानी से कट जाएंगे।
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?26. शरीर में कहीं गुम चोट लग जाए या नकसीर आए तो बर्फ की सिकाई बहुत फायदेमंद होती हैं।
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?27. अगर कोई कीड़ा-मकोड़ा काट ले, तो तुरंत कच्चे आलू का एक पतला टुकड़ा काटकर उस पर नमक लगाकर कीड़े के काटे हुए स्थान पर 5-7 मिनट तक रगड़ें।जलन और दर्द गायब हो जाएगा।
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?28. बवासीर से छुटकारा पाने के लिए सुबह खाली पेट 2 आलू-बुखारे खाए
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?29. दांत के दर्द से छुटकारा पाने के लिए अदरक का छोटा सा टुकड़ा चबाएं। दर्द तुरंत दूर हो जाएगा।
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 कुछ वास्तु दोषों पर विचार
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??घर में सबकुछ अच्छा चल रहा है लेकिन अचानक कुछ ऐसी घटना होती है जिससे घर की सुख-शांति चली जाती है। घर में अनजाने भय का एहसास होने लगता है और कोई अनहोनी घटना हो जाती है। इसका कारण भूत-प्रेत और जादू-टोना नहीं खुद घर होता है। घर में वास्तु दोष होने पर धन समृद्घि और मानसिक शांति ही प्रभावित नहीं होती है बल्कि वास्तु के अशुभ प्रभाव के कारण जीवन पर भी संकट के बादल मंडराने लगते हैं।
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?यदि किसी के घर में केवल एक गंभीर वास्तुदोष है तो उस घर में किसी को गंभीर चोट लग सकती है लेकिन जीवन पर संकट नहीं आता है। जीवन पर संकट का एक बड़ा कारण नैऋत्य कोण यानी दक्षिण पश्चिम दिशा का दोषपूर्ण होना माना जाता है। नैऋत्य कोण में भूमिगत पानी की टंकी, कुआं, बोरवेल या किसी भी प्रकार से फर्श नीचा हो तब गंभीर वास्तुदोष बनता है।
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?नैऋत्य कोण बढ़ा हुआ हो एवं घर के पश्चिम नैऋत्य कोण में मुख्य द्वार हो तब यह दोष घर के पुरूष सदस्य के लिए संकटकारी होता है। मुख्य द्वार दक्षिण नैऋत्य कोण में हो तब उस घर की स्त्री के जीवन पर संकट आता है।
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?नैऋत्य के अलावा ईशान कोण का दोष भी संकटकारी होता है। वास्तु विज्ञान के अनुसार ईशान कोण कट जाए, घट जाए, गोल हो जाए, ऊंचा हो, ऊंचाई के साथ यहां टॉयलेट हो या कमरे अथवा शेड़ के कारण यह ढ़क गया हो तब यह दिशा दोषपूर्ण हो जाती है।
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?यदि किसी मकान के ईशान कोण की दीवार अंदर की ओर दब जाए जिसके कारण आग्नेय कोण की दीवार आगे बढ़ जाए या मकान का आग्नेय कोण नैऋत्य कोण से ऊंचा और ईशान कोण की तुलना में नीचा हो जाए तब ऐसे घर में वाद-विवाद एवं आपसी संघर्ष में किसी के जीवन पर संकट के बादल मंडराते हैं।
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?यदि मकान का उत्तर वाव्यय कोण नैऋत्य कोण से ऊंचा और ईशान कोण की तुलना में नीचा हो अथवा ढंक जाए तो घर की किसी महिला सदस्य विशेषतौर पर कन्या संतान के लिए अनिष्टकारी होता है। मकान का पश्चिम वायव्य ढंका हो तो पुरूष संतान के साथ अनहोनी घटना घटती है।
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?मकान का मुख्यद्वार दक्षिण में हो और प्लॉट की पूर्व दिशा की हद तक निर्माण किया गया हो, पश्चिम दिशा में खाली जगह हो और यहीं पर भूमिगत पानी का स्त्रोत हो, पूर्व-आग्नेय बढ़ा हुआ हो तो यह कष्टकारी होता है। इस प्रकार की बनावट वाले घर में पति-पत्नी के जीवन पर संकट आता है।
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?मकान के दक्षिण नैऋत्य या पश्चिम-नैऋत्य में खाली जमीन हो और घर का मुख्य द्वार उस ओर खुल रहा हो तथा यह भाग नीचा भी हो तब एक गंभीर वास्तु दोष बनता है। इसके साथ अगर आग्नेय कोण भी दोषपूर्ण हो तब किसी शत्रुता के कारण घर में अनहोनी घटना घटित होती है। अगर वायव्य कोण दोष पूर्ण हो तब प्रेम प्रसंग के कारण जीवन पर संकट आता है।
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 ?रूकावट जब हो तो ये उपाय है।।
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अधिकांश लोग यह कहते हैं कि पता नहीं हमारे धंधे को किसकी बुरी नजर लगी है कि व्यवसाय चल ही नहीं पा रहा है। लाभ की अपेक्षा हानि अधिक हो रही है, अचानक रुकावट आ गई है। अच्छी गति से व्यवसाय चल रहा था, एक दम से गति अवरुद्ध हो गई है। शायद हमारे धंधे को किसी ने बांध दिया है। यह एक सच्चाई है, और अक्सर इसका पता तब चलता है जब काफी कुछ समाप्त हो जाता है। 
?बाँधने की क्रिया को कीलन कहते हैं। कीलन से विशेष प्रक्रिया द्वारा व्यवसाय की गति को रोक दिया जाता है, कील दिया जाता है।
?सर्वाबाधा प्रशमनं त्रैलोक्यस्याऽखिलेश्वरी एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्"
?श्री दुर्गा सप्तशती का यह मंत्र अत्यन्त प्रभावशाली है। रुद्राक्ष की माला से  एकाग्र होकर मंत्र का 11 माला जाप लगातार  रोजकरें। व्यापार में प्रगति फिर से होने लगेगी।
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